चैतन्य मिशन

चैतन्य मिशन एक आध्यात्मिक संस्था है, जो प्राचीन भारतीय ऋषियों द्वारा प्रदत्त ब्रह्मविद्या तथा योगविद्या रूपी अमूल्य धरोहर को संजोने का कार्य कर रही है। यह संस्था प्रबुद्ध चिंतनशील साधकों तथा परम पूज्य स्वामी ओम चैतन्य जी द्वारा संचालित है।

चैतन्य मिशन संस्था ज्ञान, यज्ञों, योग तथा वेदांत साधना शिविरों एवं व्याख्यानों के माध्यम से मोक्षप्रद अज्ञान नाशक वैदिक ज्ञान को प्रबुद्ध मिज्ञासु साधकों तक पहुंचाने के लिए संकल्पबद्ध है। आधुनिक दिखावे एवं बाह्याडंबर से दूर रहकर शुद्धतम रूप में सत्य सनातन वैदिक धर्म एवं संस्कृति को पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए कार्य कर रही है।

हमारे ऋषियों ने अनेकानेक वर्षों तक तप करके यह जाना कि मानव जाति की समस्त समस्याओं का मूल कारण अपने स्वरूप का अज्ञान ही है। इस अज्ञान से मुक्त होकर ही आत्मिक शांति एवं दिव्य आनंद की अनुभूति कर सकते हैं। सुख तथा शांति का उपाय आत्मज्ञान के अतिरिक्त अन्य किसी साधन से संभव नहीं है।

चैतन्य मिशन के संस्थापक पूज्य स्वामी ओम चैतन्य जी का प्रयास है कि साधक अपने अज्ञान से मुक्त होकर ईश्वरीय आनंद एवं दिव्य शांति को प्राप्त करें। वेदांत दर्शन के अंतर्गत गीता, उपनिषद, रामचरितमानस एवं पुराणों को शुद्धतम रूप में जनमानस तक पहुंचाना ही चैतन्य मिशन तथा स्वामी जी का लक्ष्य है।

चैतन्य मिशन की स्थापना 27-10-2020 को गाज़ियाबाद में की गई। तब से यह संस्था भारत के कई राज्यों में सक्रिय रूप से कार्य कर रही है। चैतन्य मिशन का मुख्य केंद्र जोधपुर, राजस्थान में स्थित है।

स्वामी ओम चैतन्य

स्वामी ओम चैतन्य संस्कृत, वेदांत दर्शन के विद्वान और अष्टांग योग के समर्पित अभ्यासी हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के कल्याणपुर ग्राम में हुआ। उनके पिता श्री श्यामनारायण मिश्र और माता श्रीमती मीरा देवी हैं। बचपन में श्रद्धा और भक्ति के कारण लोग उन्हें "पुजारी" कहकर पुकारते थे।

उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गुरुकुल में गुरु हरिहर शास्त्री "अयायल" जी के सानिध्य में प्राप्त की। आध्यात्मिक शिक्षा के लिए स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित चिन्मय मिशन में हिमालय यात्रा की। वहाँ संदीपनी हिमालय आश्रम में रहकर गुरु स्वामी सुबोधानंद सरस्वती से गहन वेदांत शिक्षा प्राप्त की।

30 मास के अध्ययन के बाद, उन्होंने गुरु तेजोमयानंद जी से ब्रह्मचारी दीक्षा प्राप्त की और उनका नाम "ओम चैतन्य" रखा गया। गुरु आज्ञा से उन्हें राजस्थान के जोधपुर एवं अन्य आश्रमों के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई। अगले चार वर्षों तक उन्होंने ज्ञान यज्ञ और वेदांत कार्यशालाओं का आयोजन किया, जिससे अनेक लोगों की आध्यात्मिक यात्रा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।

चैतन्य मिशन की अन्य गतिविधियाँ

चैतन्य मिशन के मूल उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए चैतन्य मिशन के साधकों तथा पूज्य श्री स्वामी जी महाराज द्वारा कुछ अन्य गतिविधियाँ संचालित की जाती हैं।

गुरुकुल - चैतन्य मिशन का लक्ष्य एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज का निर्माण करना है, जो ज्ञान के माध्यम से ही संभव है। इसके लिए गुरुकुलों की स्थापना करना एवं उन्हें आधुनिक तथा वैदिक शिक्षा प्रणाली द्वारा संचालित करना।

औषधालय - चैतन्य मिशन का उद्देश्य स्वस्थ और सुखी समाज की कल्पना को साकार करना है। इसके लिए औषधालयों की स्थापना एवं संचालन किया जाता है, जिसमें मुख्य रूप से योगिक उपचार, प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति एवं आधुनिक मेडिकल अस्पतालों को सम्मिलित किया गया है।

चैतन्य बाल संस्कार - 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए संस्कार एवं सनातन हिंदू संस्कृति के संवर्धन हेतु संस्कारशालाओं का संचालन सभी केंद्रों पर किया जाता है।

चैतन्य युवा शक्ति - युवाओं में नैतिकता एवं सकारात्मक व्यक्तित्व के विकास हेतु कक्षाओं एवं कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है।

चैतन्य नित्य स्वाध्याय - चैतन्य मिशन द्वारा नियमित वेदांत स्वाध्याय केंद्रों की स्थापना की जाती है, जिससे जिज्ञासु साधक स्वाध्याय समूह के माध्यम से गहन अध्ययन कर सकें।

समाज का दायित्व

समाज में कुछ लोगों के पास जीवनोपयोगी अन्न, वस्त्र, औषधि, धन, और घर आदि की अधिकता के कारण उनका दुरुपयोग होता है, वहीं दूसरी ओर, कुछ लोगों के पास इन सभी चीजों की अत्यधिक कमी के कारण उन्हें दुख सहना पड़ता है। ऐसी विषमता को कोई भी सरल हृदय व्यक्ति स्वीकार नहीं कर सकता।

इसी कारण प्राचीन समय में हमारे ऋषियों ने इस सामाजिक असमानता को मिटाने का प्रयास किया और मानव को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति धन्य है क्योंकि यहाँ की रीति-नीति और जीवन-यापन की पद्धति में धन से अधिक धर्म, भोग से अधिक योग, स्वार्थ से अधिक परमार्थ को महत्व दिया गया है। साथ ही, सत्य, तप, दया, और दान—इन चार स्तंभों की महिमा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।

वेदों, पुराणों, स्मृतियों तथा काव्यात्मक ग्रंथों में दान की महिमा, महत्व, उपयोगिता और समाज सेवा की आवश्यकता का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। दान को श्रद्धा और निष्कपट भाव से अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार देना चाहिए।

ऐसा कहा गया है कि

विद्या ददाति विनयं, विनयाद्याति पात्रताम्।

पात्रत्वाद्धनमाप्नोति, धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥

सुख का मूल साधन विद्या एवं ज्ञान है, जिसकी समाज में अत्यंत आवश्यकता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए "चैतन्य मिशन" समर्पित है, जिसमें आप सभी प्रकार से सहयोग करें।